आदेश का हिन्दी अनुवाद:
सुनवाई के दौरान, हमें लगता है कि एक अन्तरिम आदेश जारी करना उचित है, जिसके द्वारा रिक्त पद भरे जा सकेंगे और उत्तरप्रदेश में विद्यालयी शिक्षा की स्थिति में सुधार होगा/में अनावश्यक विलम्ब नहीं होगा ।
यह उल्लेखनीय है कि इस कोर्ट ने २५ मार्च २०१४ को निम्न आदेश पारित किये थे –
इस अंतरिम आदेश के द्वारा, हम उत्तर प्रदेश की सरकार को ३०.११.२०११ को जारी विज्ञापन के अनुसार स्कूलों में सहायक अध्यापक के रिक्त पदों को हर हाल में १२ सप्ताह के भीतर जितनी भी जल्दी हो सके, उसी प्रकार भरने के लिये निर्देश देते हैं जैसे कि शिव कुमार पाठक और अन्य और इससे जुडे हुए मामलों पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की खंडपीठ द्वारा निर्देश जारी किये गए थे।
इसके अलावा, सफल अभ्यर्थियों को जारी किया गया नियुक्ति पत्र में यह उल्लेख होगा कि उनकी नियुक्ति उस सिविल अपील के परिणाम के अधीन होगा जो कि इस न्यायालय के समक्ष लम्बित है। नियुक्त व्यक्ति सिविल अपीलों के अंतिम निपटान के समय किसी भी तरह के समानता या लाभ का दावा नहीं करेगा। राज्य सरकार के सभीं कार्य/कार्यवाहियॉं इन सिविल अपीलों के अंतिम परिणाम के अधीन होंगी।
उक्त आदेश के बावजूद राज्य ने नियुक्ति प्रक्रिया को पूर्ण नहीं किया है।
विभिन्न
अवसरों पर पार्टियों के लिये विद्वान वकीलों को सुनने के बाद हमारी धारणा/रूझान२५
मार्च २०१४ के आदेश को संशोधित करने की है (या हम २५ मार्च २०१४ को पारित आदेश को
संशोधित करने के लिए इच्छुक है) और निर्देश देते हैं कि राज्य सरकार को उन
अभ्यर्थियों को नियुक्ति करे जिनके नाम कदाचार में से समाप्त नहीं किया गया है और
साथ ही वे शिक्षक पात्रता परीक्षा में सत्तर प्रतिशत अंक प्राप्त है। अनुसूचित
जाति/ अनुसूचित जनजाति/ अन्य पिछडे वर्गों और शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों
से संबंधित उम्मीदवारों ने यदि ६५ प्रतशित अंक प्राप्त किया है तो उन्हें नियुक्त
किया जाए। यदि आरक्षण के उद्देश्य से किसी अन्य वर्गीकरण से युक्त राज्य सरकार की
कोई नीति है, तो
वह नीति इसी प्रतिशत के साथ/उसी अनुपात में प्रभावी की जा सकती है।
नियुक्ति पत्र में यह भी उल्लेख किया जाए कि उनकी नियुक्ति इन अपीलों के परिणाम के अधीन होगी और, यह नियुक्तिपत्र इस कोर्ट द्वारा पारित निर्देश के आधार पर जारी हुआ है ऐसा ख्याल करके या इस वजह से वे नियुक्ति के आधार पर किसी भी लाभ का दावा नहीं करेंगे। नियुक्ति का पत्र छह सप्ताह की अवधि के भीतर जारी किया जाएगा।
इस
समय, हम
यह अवश्य कहते हैं कि विज्ञापन सहायक अध्यापकों के 72825 रिक्त पदों को भरने के लिये जारी
किया गया था, जिन्हें
कक्षा एक से पॉंच तक के छात्रों को शिक्षा देना है। हमें उत्तरदाताओं के विद्वान
वकीलों द्वारा यह बताया जा चुका है कि आज की स्थिति के अनुसार तीन लाख पद खाली पडे
हैं। इस संदर्भ में हमें बच्चों के मुफत और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनिमय
२००९ के उद्देश्य और कारणों की संक्षेप में पुनराव़त्ति अवश्य करनी होगी।
सभीं
के लिये समान अवसर के प्रावधान के माध्यम से लोकतंत्र के सामाजिक ताने बाने को
मजबूत बनाने के लिए सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा की निर्णायक भूमिका हमारे गणतंत्र
की स्थापना के बाद से स्वीकार कर लिया गया है। हमारे संविधान में प्रगणित राज्य के
नीति निर्देशक सिद्धांतों के अनुसार राज्य को चौदह वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों
को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेगा। विभिन्न वर्षों में देश में प्राथमिक
विद्यालयों का महत्वपूर्ण स्थानिक और संख्यात्मक विस्तार किया गया है, फिर भी सार्वभौमिक प्राथमिक
शिक्षा के लक्ष्य को अभीं भी हम ठीक से समझ नहीं सके है।
1. बहुत से बच्चे, विशेष रूप से वंचित समूहों और
कमजोर वर्गों के बच्चे जो प्राथमिक शिक्षा पूर्ण करने से पहले स्कूल जाना छोड देते
हैं, उनकी
संख्या आज भी बहुत अधिक बनी हुई है।
2. इसके अलावा, जो कुछ भी सीखा जाता है उसकी
गुणवत्ता भी हमेंशा पूर्ण रूप से संतोषजनक नहीं है, उन बच्चों के मामले में भी जो
पूरी प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करते हैं।
3. अनुच्छेद २१ ए, जो कि संविधान में 86वें संशोधन अधिनियम २००२, द्वारा शामिल किया गया, के अनुसार, एक मौलिक अधिकार के रूप में छह से
चौदह वर्ष की आयु वर्ग के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान है, उस प्रकार से जैसा कि राज्य कानून
द्वारा निर्धारित कर सकती है।
4. परिणामतह, बच्चों का निशुल्क और अनिवार्य
शिक्षा का अधिकार विधेयक, 2008 , पारित करने के लिये प्रस्तावित किया गया, जो निम्न प्रावधान चाहता है –
(क) हर बच्चे का अधिकार है कि उसे किसी औपचारिक स्कूल में संतोषजनक और न्यायसंगत गुणवत्ता युक्त पूर्णकालिक प्राथमिक शिक्षा प्रदान किया जाय, और उस शिक्षा में कुछ बुनियादी मानदंड और मानक अवश्यत शामिल हों;
(ख) 'अनिवार्य शिक्षा' प्राथमिक शिक्षा हेतु कक्षा में प्रवेश, कक्षा में उपस्थिति और छात्रों द्वारा प्राथमिक शिक्षा पूर्ण किये जाने के लिये उससे संबंधित सरकार पर दायित्व/कर्तव्य डालती है।
(ग) 'मुफ्त शिक्षा' का अर्थ है कि कोई भी बालक किसी भी तरह का ऐसा शुल्क या फीस या खर्च देने के लिये कानूनन बाध्य नहीं होगा जो कि उसे प्राथमिक शिक्षा जारी रखने के लिये या पूरी करने से रोकता हो, हालॉंकि जो बच्चा अपने माता या पिता द्वारा किसी ऐसे स्कूल में प्रवेश दिलाया जाता है, जिसे सरकार द्वारा मदद नहीं मिल रही हो या जो सरकार द्वारा नहीं चलाया जा रहा हो, वहॉं यह मुफ्त शिक्षा का नियम लागू नहीं होगा।
(घ) मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने में संबंधित सरकारों, स्थानीय अधिकारियों, अभिभावकों, स्कूलों और शिक्षकों के कर्तव्य और जिम्मेदारियां तथा ड0. बच्चों के अधिकार की सुरक्षा के लिए एक प्रणाली और एक विकेन्द्रीक्रित शिकायत निवारक यन्त्रावली/प्रणाली होनी चाहिये।
प्रस्तावित कानून इस विश्वास के सहारे है कि समानता, सामाजिक न्याय और लोकतंत्र के
नैतिक मूल्य और एक न्यायसंगत और मानवीय समाज की रचना को केवल और केवल सभी के लिए
समावेशी प्राथमिक शिक्षा के प्रावधान के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। इस
कानून में वंचित और कमजोर वर्गों के बच्चों को संतोषजनक गुणवत्ता युक्त मुफ्त और
अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान है, इसलिए, यह न केवल संबंधित सरकारों द्वारा
समर्थित या चलाए जा रहे स्कूलों की जिम्मेदारी है वरन् उन स्कूरलों की भी
जिम्मेंदारी है जो सरकारी कोषों पर आश्रित नहीं हैं।
प्राथमिक शिक्षा को किसी बच्चे के प्राथमिक स्वास्थ्य की तरह माना जा सकता है। जब एक बच्चा शिक्षित होता है तो राष्ट्र शिक्षित और सभ्य बनने के मार्ग पर अग्रसर होता है। कोई भी छात्र बिना मार्गदर्शन के अच्छी तरह शिक्षा नहीं प्राप्त कर सकता। राज्य को सभी नागरिकों के अभिभावक के रूप में और बच्चों के लिये बढे हुए उतरदायित्वों के साथ इस बात के लिये एक पवित्र कर्तव्य रखना चाहिये कि बच्चे शिक्षित हों। लगभग दो हजार साल पहले कौटिल्य ने कहा था कि जो मातापिता अपने बच्चों को पढने नहीं भेंजते उन्हें दण्डित किया जाना चाहिये। लगभग सात शताब्दियों पूर्व ऐसा ही इंगलैंड में भी था। इस प्रकार शिक्षा के महत्व को अच्छी तरह से पहचाना जा सकता है।
ऐसी स्थिति में, हम यह नहीं मान सकते कि पद खाली रहें, छात्र न पढें और स्कूल इस तरह के हों जैसे कि किसी रेगिस्तान में कोई ऐसी बंजर भूमि हो जो कि हरा भरा मरूद्यान बनने के लिये काफी समय से इंतजार कर रही हो। शिक्षक शिक्षा के क्षेत्र में बंजर भूमि को हरे भरे मरूद्यान बनाने जैसा कार्य करेंगे। अतह उपरोक्त निर्देश दिये गए हैं।
सक्षम प्राधिकारी आज्ञापालन/अनुपालन रिपोर्ट फ़ाइल करेगा, जिसमें नाकाम रहने पर उन्हें कानून के अनुसार नतीजों का सामना करना होगा और कानून न्यायालय के आदेशों की अवज्ञा का समर्थन नहीं करता है। मामले की अगली सुनवाई के लिये २५ फरवरी २०१५के लिये सूचीबद्ध किया जाता है।
(कोर्ट मास्टर चेतन कुमार और एच एस पराशर)
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