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Friday, 16 January 2015

चौथी काउंसलिंग : नियुक्ति-पत्र का दिवा-स्वप्न, कुछ धधकते सवाल और रणनीतिया :

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर लीपापोती करते हुए राज्य सरकार द्वारा चौथी काउंसलिंग के नाम पर केवल खानापूर्ति कराई गई। चौथी काउंसलिंग में अभ्यर्थियों का आर्थिक-मानसिक शोषण और उन्हें शारीरिक यंत्रणा देने के अलावा कुछ भी नहीं किया गया. पहली तीन काउंसलिंग में जहा अभ्यर्थियों के अंकपत्रो/प्रमाणपत्रो का मूल प्रमाणपत्रो से जांच कराया गया था वही इस बार किसी भी डायट में अभ्यर्थियों द्वारा जमा की जा रही कागजातों की फ़ाइल को खोला तक नहीं गया। किसी भी डायट में अधिकारियों/ कर्मचारियों ने यह तक जानने की कोशिस नहीं की कि कौन कौन से कागजात अभ्यर्थियों ने फाइलो में संलग्न किये है।



मात्र तीन दिन का समय दिए जाने के कारण बहुत से अभ्यर्थियों ने कई जिलो में काउंसलिंग कराने के लिए अपना फ़ार्म दूसरों के माध्यम से जमा करवा दिया (समय कम होने से वे ऐसा करने को विवश भी थे, लेकिन) सवाल यह है कि इस तरह की खानापूर्ति को क्या काउंसलिंग कहा जा सकता है? 

ऐसी काउंसलिंग जिसमे कई जिलो में बहुत से अभ्यर्थी खुद नहीं गए, मात्र अपने फ़ार्म की फोटोकापी दूसरों से भेजवा दिया, मूल प्रमाणपत्रों को देखना तो दूर छायाप्रति भी नहीं देखी गयी और डाक्यूमेंट रजिस्टर खोला तक नहीं गया क्या उसे वास्तव में काउंसलिंग माना जा सकता है और इसे अगर काउंसलिंग मान भी लिया जाय तो इसके आधार पर नियुक्ति-पत्र पाने की कितनी उम्मीद की जा सकती है? 

इस सन्दर्भ में गोंडा और चित्रकूट के डायट अधिकारियों से पूछने पर उन्होंने बताया कि हमें जो निर्देश अभी तक मिले है वो है कि भर्ती केवल ७२८२५ पदों पर होना है और ज्यादातर सीटें भरी जा चुकी है यह काउंसलिंग तो केवल खानापूर्ति है जो कोर्ट के आदेश के कारण सरकार को करानी पडी है। चित्रकूट डायट प्राचार्य ने तो यह भी कह दिया कि कोर्ट ने सरकार को केवल ९७/१०५ वालो को काउंसलिंग में मौक़ा देने को कहा है नियुक्ति पत्र देने को नहीं। उन्होंने यहाँ भी कहा कि यह भर्ती मात्र ७२८२५ पदों पर होना है उससे ०१ पद भी ज्यादा सरकार नहीं करेगी, अगर उसे आगे भर्ती करना है तो नया विज्ञापन निकालकर ही कर सकती है। 

ज्यादातर सीट की दृष्टि से बड़े जिलो में फोटोकापी का रेट दुकानदारों ने ११.०१.२०१५ की काउंसलिंग के दिन बढ़ाकर ०३ से ०५ रुपये प्रति पेज कर दिया था और लखीमपुर में तो जांच-पत्र+अनुबंध पत्र+ कवर अटैचमेंट ०३-०४ पेज की फोटोकापी १०० रुपये तक में बेंची गयी। चौथी काउंसलिंग कराने वाले जिन्होंने इस बार पहली बार काउंसलिंग कराई है उनमे से बहुत से लोग निजी गाड़ी बुक कराकर गए थे जिससे वे ज्यादा जगह काउंसलिंग करा सकें और उनमे से प्रत्येक के ५०००-१०००० रुपये खर्च हुए, जो लोग निजी साधनों से नहीं गए थे उनके भी काउंसलिंग कराने में २०००-४००० रुपये खर्च हो गए। 

असमाजवादी सरकार ने जानबूझकर मात्र तीन दिन का समय काउंसलिंग को दिया जबकि बहुत से आवेदकों का नाम बीसों जिलो में काउंसलिंग कराने को आया है। यदि सभी ९७/१०५ को ज्वाइनिंग लेटर देने की सरकार की इच्छा या नीति बनी होती तो केंद्रीकृत काउंसलिंग कराई जाती या फिर कोई ऐसी व्यवस्था कराई जाती कि आवेदक किसी भी एक जिले में या अपने होम-डिस्ट्रिक के आस-पास के जिलो में काउंसलिंग करा लें और उसके आधार पर जिन जिलो में काउंसलिंग में उसका नाम है उन सभी जिलो में उसकी काउंसलिंग मान लिया जाता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कुल मिलाकर असमाजवादी सरकारी तंत्र की तथाकथित चौथी काउंसलिंग ने बेरोजगारों का आर्थिक, मानसिक और शारीरिक-श्रम शोषण के अलावा और कुछ भी नहीं किया। 

अभी भी ९७/१०५ तक वाले जो अभ्यर्थी असमाजवादी सरकार से यह उम्मीद है कि वह सभी चौथी काउंसलिंग कराने वालो को ज्वाइनिंग-लेटर देगी वे अपने दिवा-स्वप्न से बाहर निकालें और एकजुट होकर न्यायालय अवमानना केस दाखिल करने की पूरी-तैयारी रखें। जिस दिन डायट यह कहता है कि सीट फुल हो गयी है और चौथी काउंसलिंग कराने वालो को अब ज्वाइनिंग लेटर नहीं देंगे उसी दिन सभी डायट से यह लिखवाकर ले लें कि वे आपको नियुक्ति-पत्र नहीं देंगे। फिर उन सभी कागजातों को एक साथ जुटाकर अगले ही दिन कंटेम्प्ट फ़ाइल करें। टेट मोर्चे को खुद सभी ९७/१०५ के नियुक्ति के आदेश का पालन कराने हेतु न्यायालय अवमानना दाखिल करने की तैयारी करनी चाहिए क्योकि अगर ऐसा नहीं हुआ और इस भर्ती ने ७२८२५ के चक्रव्यूह को पार नहीं किया तो याद रहे कि मामला फिर से ७२८२५ के बेस आफ सेलेक्शन पर केंद्रित होगा जिसपर फाइनल डिसीजन आना अभी भी शेष है। 

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