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Sunday, 1 February 2015

शिक्षक भर्ती : नपेंगे फर्जी मार्कशीट लगाने वाले, जेल भी जा सकते हॆ, नियुक्ति पत्र पाने के बाद भी छिन सकती है नौकरी

लखनऊ: प्राइमरी स्कूलों में चल रही शिक्षक भर्ती में नियुक्ति पत्र मिलने के बाद भी हजारों अभ्यर्थियों की नौकरी छिन सकती है। यही नहीं वे जेल तक जा सकते हैं।

दरअसल 6,000 ऐसे अभ्यर्थी हैं, जिनकी मार्कशीट फर्जी होने की आशंका है। भर्ती होने के समय से ही लगभग हर जिले से फर्जी मार्कशीट की शिकायतें भी आई हैं। यही वजह है कि सरकार ने सभी अभ्यर्थियों का टीईटी का मूल रिजल्ट वेबसाइट पर डाल दिया है। अब हर जिले के बीएसए को मूल रिजल्ट से मिलान करना है।

जिसकी मार्कशीट फर्जी पाई गई, उसके खिलाफ बीएसए कार्रवाई करेंगे। टीईटी की परीक्षा 2011 में यूपी बोर्ड ने करवाई थी। हालांकि टीईटी अर्हता परीक्षा होती है लेकिन उस समय प्रदेश सरकार ने इसी को भर्ती परीक्षा मानते हुए विज्ञापन जारी किया था। मामला हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिए कि सरकार ने भर्ती परीक्षा के तौर पर विज्ञापन जारी किया, इसलिए इसी के आधार पर भर्ती कराई जाए।

धांधली के आरोप में जेल गए थे निदेशक

ये वही परीक्षा है, जिसमें धांधली के आरोप लगे थे और माध्यमिक शिक्षा निदेशक संजय मोहन जेल गए थे।

उस समय संशोधन के नाम पर नंबर बढ़ाने के आरोप लगे थे। इस वजह से यह परीक्षा रद करने की भी मांग उठी थी लेकिन बाद में टीईटी अभ्यर्थियों ने कोर्ट में यह याचिका दायर की कि जिन्होंने अच्छे नंबर से परीक्षा पास की है, उनकी इसमें कोई गलती नहीं है। इस पर कोर्ट ने भर्ती कराने के आदेश दिए।

मुश्किल से मिला था मूल रिजल्ट

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जब से यह भर्ती प्रक्रिया शुरू हुई, तब से इसमें फर्जीवाड़े के आरोप लग रहे हैं। इसकी वजह बताई जा रही है कि काफी फर्जी मार्कशीट जारी हुई हैं।

टीईटी 2011 के मूल रिजल्ट को लेकर भी विवाद उठा था। यह कहा जा रहा था कि बिना मूल रिजल्ट के ही भर्ती हो रही है। इस पर सचिव बेसिक शिक्षा ने यूपी बोर्ड और एससीईआरटी के अधिकारियों को कड़े निर्देश दिए थे और मूल रिजल्ट को जल्द देने की मांग की थी।

काउंसलिंग के समय से ही आ रहीं शिकायतें। 6,000 अभ्यर्थी पहले ही शक के दायरे मे

काउंसलिंग के समय से ही शिकायतें लगातार आ रही हैं। अभ्यर्थियों ने कहा था कि जिनके रिजल्ट के समय कम नंबर थे, उन्होंने काउंसलिंग में ज्यादा नंबर की मार्कशीट लगाई है। उन्होंने एससीईआरटी, बीएसए दफ्तरों में दर्जनों शिकायतें दर्ज कराने के साथ ही सोशल मीडिया पर भी ऐसे कई रोल नंबर डालकर इसको उजागर करने का दावा किया था। उनके ही दबाव के बाद अब सरकार ने मूल रिजल्ट वेबसाइट पर डाला है और बीएसए को मिलान करके कार्रवाई के लिए कहा गया है।

मूल रिजल्ट वेबसाइट पर डाल दिया गया है। लगातार शिकायतें आ रही थीं। अब रिजल्ट से मिलान करने से तस्वीर साफ हो जाएगी। बीएसए ही नियुक्ति अधिकारी होते हैं, वे इस रिजल्ट से मिलान करेंगे। यदि कोई फर्जीवाड़ा पाया जाता है तो वे ही कार्रवाई भी करेंगे। -सर्वेंद्र विक्रम सिंह, निदेशक एससीईआरटी

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  3. टी.ई.टी उत्तीर्ण बेरोजगार समिति
    अतीत से वर्तमान की ओर:
    बीएड शिक्षा सदैव TGT और एलटी के लिए
    योग्यता रही थी ।
    उत्तर प्रदेश में बीटीसी प्रशिक्षुओं की कमी को देखते
    हुये बीजेपी (कल्याण) सरकार ने बीएड वालों से
    NCTE से 27 हजार प्राथमिक शिक्षक के
    पदों को भरने की इजाजत ली ।
    जिसमें 1981 नियमावली के अनुसार चयन का आधार
    हाई स्कूल प्रतिशत ×.1+ इंटरमीडिएट प्रतिशत× .2+
    स्नातक प्रतिशत ×.3+ बीएड सिद्धांत +प्रयोग प्रथम/
    द्वितीय/तृतीय 12/6/3 का मानक बनाया ।
    वर्ष 2002 में बीजेपी (राजनाथ) सरकार ने पुनः 46
    हजार पदों की इजाजत ली परन्तु चयन का मानक
    बदलकर स्नातक के प्रतिशत में ×.4 कर
    दिया तथा महिला/पुरुष /कला/विज्ञान एवं
    पिछड़ा /अति पिछड़ा एवं दलित /अतिदलित में बाँट
    दिया ।
    लोगों ने सत्रह दिन तक प्रशिक्षण ले
    लिया था लेकिन प्रक्रिया कोर्ट में चैलेंज हो गयी
    तथा सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सपा सरकार ने
    उक्त रिक्ति को भरा ।
    सपा सरकार ने चयन के आधार को बदल
    दिया तथा महिला/पुरुष/कला / विज्ञान
    का वर्गीकरण बनाये रखा ।
    चयन मानक के रूप में हाई स्कूल , इंटरमीडिएट , स्नातक,
    बीएड सिद्धांत एवं बीएड प्रयोग प्रतिशत का योग
    रहा ।
    सपा (मुलायम) सरकार ने पुनः 88 हजार पद भरने
    की इजाजत ली तथा सरकार
    चली गयी तो बसपा (मायावती) सरकार ने वर्ष
    2007-08 में उक्त पद को तीन भागों में बांटकर
    भरना चाहा ।
    सर्वप्रथम 60 हजार फिर 10 हजार बैकलॉग उसके बाद
    18 हजार ।
    बसपा सरकार ने सपा सरकार के चयन आधार में आंशिक
    परिवर्तन करते हुये बीएड के सिद्धांत और प्रयोग के
    प्राप्तांक को एक में जोड़ कर प्रतिशत निकाला ।
    बीएड वालों की नियुक्ति सुनिश्चित होती है
    इसलिए रमेश कुमार सिंह ने अधिवक्ता शैलेन्द्र के
    माध्यम से उक्त भर्ती पर नियमावली लागू करने
    का वाद दाखिल किया ।
    जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने पूरे प्रदेश सरकार को सिर के
    बल खड़ा कर दिया ।
    इसी दरम्यान एक याचिका जस्टिस डीपी सिंह के
    यहाँ फाइल हुयी कि जिस चयन के आधार पर
    रिक्ति निकली वही लागू हो परन्तु प्रदेश सरकार ने
    साबित कर दिया कि यह मात्र प्रशिक्षण है
    नियुक्ति की गारंटी नहीं है तथा सिद्धांत और
    प्रयोग को एक साथ रखने और अलग-अलग रखने पर फर्क
    नहीं पड़ता ।
    जस्टिस सुधीर अग्रवाल अयोध्या मामले की सुनवाई
    करने लखनऊ चले और केस को जस्टिस दिलीप गुप्त
    की कोर्ट में कमजोर कर दिया गया।
    जस्टिस सुधीर अग्रवाल फिर लौट कर आये
    तथा 02/02/2011 को सुनवाई की तब यह सुनिश्चित
    हो गया कि यदि कोई
    अगली भर्ती आयेगी तो नियमावली का बदलना तय
    है ।
    सरकार की कुटिल नीति से तथा अनिल संत के
    व्यवहार से जस्टिस सुधीर अग्रवाल अत्यंत खफा थे ।
    इस प्रकार SBTC is equivalent BTC होने के कारण
    आज भी नॉन टीईटी SBTC सुप्रीम कोर्ट में रो रहे हैं ।
    यदि सुप्रीम कोर्ट ने इनको 23/08/2010 के पूर्व
    का चयनित मानकर टीईटी से राहत दी तो फिर
    बसपा की 88 हजार भर्ती पुनः न्यायिक
    प्रक्रिया के तहत चर्चा में होगी ।
    दिनांक 29/07/2011 को NCTE ने पैरा तीन में बीएड
    वालों को एक निश्चित तिथि तक के लिए सहायक
    अध्यापक पद पर नियुक्ति का पात्र माना ।
    RTE लागू करने के बाद उत्तर प्रदेश को 72825 पद भरने
    की इजाजत मिली ।
    दिनांक 27/09/2011 को शासनादेश जारी हुआ
    तथा बाद में कुछ आंशिक परिवर्तन का शासनादेश
    आया ।
    13 नवम्बर 2011 को टीईटी परीक्षा थी एवं 09
    नवम्बर 2011 को नियमावली में 12वां संशोधन कर
    टीईटी को चयन का आधार बनाया गया ।
    जिसे सीताराम /विकास श्रीवास्तव समेत कई
    याचियों ने चुनौती दी परन्तु NCTE की 11/02/11
    की अधिसूचना के कारण टीईटी मेरिट को जस्टिस
    सुधीर अग्रवाल ने सही माना ।
    30 नवम्बर 2012 को 72825 का विज्ञापन सचिव ने
    सभी BSA की तरफ से जारी किया जिसे सर्वप्रथम
    सरिता शुक्ला एवं अन्य ने
    अधिवक्ता अग्निहोत्री त्रिपाठी के माध्यम से
    पांच जिले में आवेदन की बाध्यता के कारण
    चुनौती दी ।

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  4. जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने विज्ञप्ति रद्द करके अनिल
    संत पर अपनी विधिक खीझ निकाली जो कि जायज
    थी । दिनांक : 20/12/2011 को
    संशोधित विज्ञप्ति आई तथा एक ही डीडी से
    समस्त जनपदों में आवेदन की छूट प्रदान
    की गयी तथा आवेदन की अंतिम तिथि 18/12/2011
    से बढ़ाकर 09/01/2012 कर दी गयी।
    4 जनवरी 2012 को कपिल देव यादव की याचिका पर
    सचिव द्वारा विज्ञापन जारी होने के कारण
    जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने स्टे लगा दिया ।
    6 जनवरी 2012 को बेंच चेंज हो गयी तथा जस्टिस
    अरुण कुमार टंडन ने 16 जनवरी 2013 तक सुनवाई
    की तथा तब फाइनल निर्णय सुनाया ।
    इस बीच उन्होंने
    ट्रेनी का ऐड होने के कारण 30/11/11 अमेंड 20/12/11
    का ऐड लौटवाया ।
    नियमावली में 15 वां संशोधन (31/8/12) हुआ ।
    12वां संशोधन सरकार ने रद्द किया जिसका कारण
    टीईटी परीक्षा जो कि चयन का आधार थी उसमे
    Malpractise बताया ।
    5 दिसम्बर 2012 को नियमावली में बीएड
    वालों की नियुक्ति के लिए रूल 2 में (U) बना ।
    07/12/2012 को 72825 पद पर अमेंडमेंट 15 से
    नया विज्ञापन आया।
    अमेंडमेंट 15 में बीएड के प्रतिशत में .3 के गुणज निर्माण
    में मेरी भूमिका रही जिससे टीईटी के संघर्ष में
    पश्चिमी जिले भागने न पायें क्योंकि बीएड
    थ्योरी एवं प्रैक्टिकल 12,6,3 की खबर सुनकर ये लोग
    टीईटी मेरिट के प्रति समर्पण घटा रहे थे क्योंकि मेरठ
    यूनिवर्सिटी में थ्योरी में फर्स्ट ज्यादा आता है ।
    अरविन्द शुक्ल की याचिका पर अधिवक्ता अनिल
    तिवारी ने जस्टिस वीके शुक्ल के यहाँ साबित
    किया कि बराबर प्रतिशत अंक होने के बावजूद मात्र
    विश्वविद्यालय बदलने से असमानता आ जाती है ।
    इसके बावजूद पालिसी मामला बताकर जस्टिस शुक्ल
    ने रिट ख़ारिज कर दी।
    दिनांक 16 जनवरी 2013 को अखिलेश त्रिपाठी एवं
    अन्य के साथ तमाम बंच याचिका जस्टिस अरुण कुमार
    टंडन ने ख़ारिज कर दी जिसमें अमेंडमेंट 15 और नये
    विज्ञापन को चुनौती देते हुये पुराने ऐड को बहाल
    करने को कहा गया था ।
    आशीष मिश्र की याचिका पर पुराने विज्ञापन के
    ओवर ऐज आवेदकों को नये विज्ञापन में आवेदन
    का अवसर दिया ।
    जनवरी के आखिरी सप्ताह में जस्टिस आरके अग्रवाल
    के यहाँ SLP फाइल हुयी तथा खंडपीठ बदल गयी और
    जस्टिस सुशील हरकौली और जस्टिस मनोज मिश्र ने
    नये विज्ञापन की काउंसलिंग पर रोक लगा दिया ।
    सरकार द्वारा ओवर ऐज को मौका न देने के कारण
    सरकार द्वारा फाइल SLP को भी स्वीकार कर
    ली तथा कहा कि विवाद निपटने पर यह मुद्दा सुलझ
    जायेगा ।
    अरविन्द शुक्ल की SLP भी स्वीकार कर ली ।
    मै ओल्ड ऐड के शासनादेश में रूल्स समाहित न होने के
    कारण चुनौती देना चाहता था परन्तु टीईटी मेरिट के
    प्रति मेरी निष्ठा ने ऐसा करने से रोक दिया
    क्योंकि शासनादेश रद्द होता तो फिर वह
    शासनादेश नये अमेंडमेंट 15 पर ही आता ।
    जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस विपिन
    सिन्हा की खंडपीठ ने
    शासनादेश 27/09/2011 के एक्टिव होने अर्थात रद्द न
    होने के कारण एवं सहायक अध्यापक का ही होने के
    कारण
    उस पर जारी ऐड 30/11/2011 अमेंड 20/12/2011
    को असिस्टेंट टीचर के रूप में बहाल कर दिया ।
    नये ऐड के चयन के आधार
    अमेंडमेंट 15 को अलग-अलग यूनिवर्सिटी की मार्किंग
    प्रणाली की वजह से असमान होने के कारण संविधान
    के आर्टिकल 14 के कारण अल्ट्रा वायरस कर दिया ।
    अमेंडमेंट 16 से बने रूल 2(u) को रद्द कर
    दिया क्योंकि NCTE ने 29/07/2011 को पैरा तीन में
    बीएड वालों को एक निश्चित अवधि तक के लिए
    सहायक अध्यापक की नियुक्ति के लिए पात्र मान
    लिया था
    अतः यह तिथि समाप्त होने पर रूल 2 (U) विवाद
    का विषय बनता।
    इसके बाद मै अमेंडमेंट 12 को पाकर उसी आधार पर
    शासनादेश चाहने लगा
    जिससे वर्गीकरण जो नियम विरुद्ध है ख़त्म हो जाये ।
    यह सरकार इस फाल्ट को बड़ा मुद्दा मानती है
    अतः वर्गीकरण को बनाये हुये है ।
    सरकार ने खंडपीठ के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में
    चुनौती दी तथा अमेंडमेंट 15 पर कई भर्ती हो चुकी है
    अतः उनके भविष्य का निर्धारण किये बिना हाई
    कोर्ट ने रद्द कर दिया अतः उनके हित की दुहाई दी ।
    25 मार्च 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने
    हाई कोर्ट के फैसले को अंतरिम तौर पर बहाल कर
    दिया तथा नियुक्ति को निर्णायक आदेश के आधीन
    कर दिया ।

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  5. नये विज्ञापन के चयन के आधार के अल्ट्रा वायरस
    होने के कारण
    उसके आवेदकों ने कपिल देव के नेतृत्व में वाद दाखिल
    किया ।
    ऐसे लोग जो ओल्ड ऐड में आवेदक नहीं थे उन्होंने
    विजेन्द्र कश्यप एवं विवेक तिवारी के नेतृत्व में वाद
    दाखिल किया ।
    साधना मिश्रा ने ओल्ड ऐड के शासनादेश
    को ही चुनौती देनी चाही तो सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें
    हाई कोर्ट भेज दिया तथा CTET वाले जो कि ओल्ड
    ऐड में पात्र नहीं थे उन्होंने भी पुराने ऐड के शासनादेश
    को चुनौती देनी चाही ।
    आज इन सबकी याचिका लखनऊ बेंच में पेंडिंग है ।
    दिसम्बर 2014 में मुकदमें की फाइनल बहस शुरू
    हुयी जिसमें
    हाई कोर्ट में प्रतिवादी रहे लोग सुनवाई से
    भागना चाहते थे किन्तु जस्टिस श्री दीपक मिश्र ने
    कहा कि पेपर में नोटिस इशू हुयी थी अतः सर्विस
    पूरी है ।
    RTE के कारण हाई कोर्ट के आदेश को अंतरिम तौर पर
    लागू किया गया था ।
    11 दिसम्बर 2014 की सुनवाई में लोग इलाहाबाद से
    एक वकील अभिषेक श्रीवास्तव को ले गये थे
    जो कि शाशिनंदन के साथ हाई कोर्ट में नये
    विज्ञापन पर 4 फरवरी 2013 को स्टे में सूत्रधार थे ।
    उन्होंने ऐसी बहस कर दी कि जस्टिस श्री दीपक
    मिश्र ने NCTE
    को भी पार्टी बना दिया तथा यूनियन ऑफ़
    इंडिया के लॉयर को खुद को असिस्टेंट करने के लिए
    बुला लिया ।
    16 दिसम्बर की बहस में कोर्ट ने चयन के आधार पर
    टिप्पणी की तथा
    वादी प्रतिवादी सरकार सबने क्वालिटी टीचर
    की बात की ।
    जब टीईटी मेरिट का पक्ष कमजोर
    दिखा क्योंकि क्वालिटी में शैक्षिक
    अंकों की पूर्णतया अनदेखी करना कोर्ट को रास न
    आया तो अधिवक्ता वर्मा ने मामले को संविधान
    पीठ में भेजने की मांग की ।
    जस्टिस श्री मिश्र और नाराज हुये ।
    एक महिला वकील ने कोर्ट को बताया कि उत्तर
    प्रदेश में तीन लाख पद रिक्त हैं तो कोर्ट ने दस हजार
    पद के लिए एक चयन का मानक लाने को कहा ।
    अगले दिन जब 17/12/2014 को
    यूनियन ऑफ़ इंडिया के लॉयर कोर्ट में पहुंचे तो कोर्ट
    ने पूंछा कि क्या कहना है तो उन्होंने कहा कि सिर्फ
    टीईटी उत्तीर्ण करना अनिवार्य है यही बात NCTE
    लॉयर ने भी कही तथा चयन का आधार निर्धारित
    करने का अधिकार राज्य का बताया ।
    सामने अवकाश देखकर तथा चयन का आधार न
    निर्णित होते देख
    कोर्ट ने पुनः अंतरिम आदेश सुनाया तथा मामले
    को 25 फरवरी 2015 के लिए लिस्टेड किया ।
    टीईटी का न्यूनतम कटऑफ़ 60/55 होने के कारण सबसे
    पहले 75/70 को छः सप्ताह में नियुक्त करने का आदेश
    किया परन्तु malpractise में शामिल
    लोगों को नियुक्ति न मिले यह भी फरमान
    जारी किया ।
    अधिवक्ताओं के निवेदन पर 70/65 कर दिया ।
    इस सरकार ने छः सप्ताह भी बिता दिया परन्तु
    76.67
    फीसदी अंक प्राप्त करके
    नियुक्ति से वंचित हूँ तथा मेरे जैसे तमाम लोग बैठे हैं
    इसी के साथ
    तमाम फर्जियों ने नियुक्ति पा ली है।
    मुझे उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा का बीस वर्ष
    का इतिहास पता है तथा न्यायिक तजुर्बे के साथ
    कहता हूँ कि
    यह आदेश प्रथम अथवा द्वितीय ऐड पर नहीं अपितु
    रिक्त पदों के सापेक्ष मौजूद योग्य
    दावेदारों को देखकर आया है ।
    अभी भी यदि अचयनित बेरोजगार अथवा कुछ
    ईमानदार चयनित भाई बहन उन नेताओं जिनका मै
    नाम नहीं लिखना चाहता परन्तु वे चयनित हो चुके हैं
    तथा कुछ नेता जो अभी अचयनित हैं परन्तु
    पैसा कमाना चाहते हैं उनके झांसे में पड़े
    तो उनका भयानक नुकसान होगा।
    वस्तुतः चार वर्ष से पीड़ित बेरोजगारों और जान दे
    देने वाले भाई बहनों का एक भी नाजायज पैसा खाने
    वालों को कोढ़ होगा ।
    वस्तुतः मै जानता हूँ कि सुप्रीम कोर्ट का परिणाम
    क्या होगा परन्तु उक्त विषय पर सार्वजनिक
    चर्चा कोर्ट की अवमानना की श्रेणी में आता है।
    कोर्ट की एक प्रोसीडिंग होती है अतः ईश्वर ने
    जितना सक्षम बनाया है उतना संघर्ष करूँगा ।
    लोगों द्वारा स्वेच्छा से किये गये या किये जा रहे
    आर्थिक सहयोग का सदुपयोग करूँगा ।

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  6. एक बात और बता दूँ जो उत्तर प्रदेश में व्यापक
    रिक्ति को देखते हैं वे चिंता मुक्त होकर संघर्ष करें
    तथा जो मात्र 72825 पद ही मानते हैं
    वे किसी डायरी में लिख लें कि 27/09/2011
    का शासनादेश न्यायालय रद्द कर देगी ।
    ऐसी स्थिति में उनके चयन पर मुझे संदेह नहीं है परन्तु
    चयन तिथि पर संदेह अवश्य है ।
    इसका फैसला कोर्ट द्वारा सत्यापित राज्य/केंद्र
    द्वारा स्थापित
    सिलेक्शन क्राइटेरिया करेगी ।
    ईश्वर आपका वर्तमान और भविष्य उज्जवल करे।
    धन्यवाद ।
    - Rahul G. Pandey
    'Avichal'

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