नई दिल्ली (ब्यूरो)। उत्तर प्रदेश के करीब 10 हजार प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्ति पर लगा ग्रहण मंगलवार को छंट गया। सर्वोच्च अदालत ने इन शिक्षकों की नियुक्ति को सही ठहराते हुए प्रदेश सरकार की याचिका खारिज कर दी। राज्य सरकार ने अपनी याचिका में कहा था कि इनके पास प्राथमिक शिक्षक बनने के लिए वांछनीय योग्यता नहीं है।
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली राज्य सरकार की याचिका खारिज कर दी है।
दूसरे पक्ष को नोटिस जारी करने से पहले ही सर्वोच्च अदालत ने मामले का निपटारा कर दिया।
वास्तव में इन शिक्षकों ने डिप्लोमा इन एजुकेशन (स्पेशल एजुकेशन) कर रखा है और इसी आधार पर इन सभी को प्राथमिक शिक्षक नियुक्त किया गया था। लेकिन प्रदेश सरकार ने इस आधार पर उनकी नियुक्ति को चुनौती दी थी कि इनके पास वांछनीय योग्यता नहीं है। सरकार की इस दलील को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी नकार दिया था। उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्ति नेशनल काउंसिल फॉर टीचर एजुकेशन (एनसीटीई) के दिशानिर्देशों के तहत होनी चाहिए। वहीं सरकार का मानना था कि प्राथमिक शिक्षकों के लिए स्नातक होने के साथ-साथ बेसिक टीचिंग सर्टिफिकेट (बीटीसी) जरूरी है।
छात्रों की ओर से पेश वकील अवनीश सिंह का कहना था कि शिक्षकों ने मान्यता प्राप्त संस्थान से डिप्लोमा इन एजुकेशन कर रखा है और इसे रिहेबिलिटेशन काउंसिल ऑफ इंडिया (आरसीआई) से मंजूरी मिली हुई है। अगस्त 2010 में एनसीटीई ने पहली से पांचवीं कक्षा तक के शिक्षकों की नियुक्ति के लिए यह शर्त तय की थी। इतना ही नहीं ये शिक्षक टीचर इलेजिबिलिटी टेस्ट (टीईटी) भी पास कर चुके हैं।
इन दस हजार प्राथमिक शिक्षकों में से करीब चार हजार की नियुक्ति हो चुकी है और उनकी काउंसिलिंग भी शुरू हो चुकी थी। वहीं करीब छह हजार प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्ति होनी बाकी है
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